कहां प्रकट हुए थे भगवान नृसिंह, कहां मनाई गई थी सबसे पहले होली? 1 नहीं 3 जगहों से जुड़ी हैं ये मान्यता

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वैसे तो होली से जुड़ी कई कथाएं हैं, लेकिन सबसे प्रचलित कथा भक्त प्रह्लाद और भगवान नृसिंह से जुड़ी है। हमारे देश में कई ऐसे स्थान हैं जो भक्त प्रह्लाद से संबंधित माने जाते हैं। कहा जाता है कि इन्हीं में से किसी स्थान पर भगवान नृसिंह प्रकट हुए थे। इनमें से एक स्थान तो वर्तमान पाकिस्तान में है। इन स्थानों को लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत और मान्यताएं हैं। होली (Holi 2023) के मौके पर इन स्थानों पर कई परंपराएं भी निभाई जाती हैं। होली के मौके पर हम आपको ऐसे ही तीन स्थानों के बारे में बता रहा हैं जो भक्त प्रह्लाद और भगवान नृसिंह से संबंधित हैं…

पाकिस्तान के इस शहर से मानी जाती है होली की शुरूआत
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मुलतान नाम का एक शहर है, जहां प्रह्लादपुरी नाम का एक प्राचीन मंदिर है। ये मंदिर भगवान नृसिंह को समर्पित है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भक्त प्रह्लाद ने करवाया था। एक मान्यता ये भी कि पहले इस स्थान का नाम कश्यपपुर था जहां भक्त प्रह्लाद राजा हुआ करते थे। कुछ लोगों को मानना है कि इसी स्थान पर होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी थी और बाद में यहीं भगवान नृसिंह खंबा फोड़कर प्रकट हुए थे। हालांकि अब इस स्थान पर मंदिर के अवशेष ही दिखाई देते हैं। रख-रखाव के अभाव में ये धार्मिक स्थल पर खंडहर में बदल चुका है।

बिहार की ये जगह भी जुड़ी है भक्त प्रह्लाद से
बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा को भी भक्त प्रह्लाद का स्थान माना जाता है। मान्यता है कि यही वो स्थान है जहां भगवान नृसिंह ने प्रकट होकर भक्त प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की थी। इसी मान्यता के चलते यहां हर साल होली का त्योहार राजकीय महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यहां के लोग आज भी रंगों से नहीं बल्कि राख से होली खेलते हैं। यहां एक खंभा है, जिसे माणिक्य स्तंभ कहते हैं। कहते हैं कि इसी खंबे तो तोड़कर भगवान नृसिंह यहां प्रकट हुए थे। विदेशी आक्रांताओं ने इसे तोड़ने का कई बार प्रयास किया, लेकिन ये टूटा नहीं।

इसे भी मानते हैं भगवान नृसिंह की प्रकट स्थली
भारत में ही एक और जगह है, जिसकी मान्यता भगवान नृसिंह से जुड़ी हुई है। ये जगह है यूपी का हरदोई। मान्यता के अनुसार, हरदोई का पूर्व नाम हरिद्रोही था क्योंकि यहां राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यिपु का राज था, जो भगवान हरि को अपना परम शत्रु मानता था। स्थानीय मान्यता के अनुसार, यहीं पर होलिका दहन हुआ था, जिसमें होलिका तो जल गई थी और भक्त प्रह्लाद बच गए थे। इसी स्थान पर भगवान नृसिंह ने प्रकट होकर हिरण्यकश्यिपु का वध किया था। आज ये स्थान प्रह्लाद कुंड के नाम से जाना जाता है।