डॉ रमन सिंह बने विधानसभा अध्यक्ष, कैसे चुना गया क्या प्रक्रिया रही देखिए वीडियो

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रायपुर। छत्तीसगढ़ को नया विधानसभा अध्यक्ष मिल चुका है। डॉ रमन सिंह को मंगलवार को सर्वसम्मति से विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया। पूर्व अध्यक्ष चरणदास महंत ने कहा आपको बधाई, सर्व सम्मति से हमने आपको चुना है। हमारा समर्थन देना हमारे संस्कार को दिखाता है। हम सब आपके स्वभाव को जानते हैं। आप बेहतर इंसान हैं। हम सबने देखा आपको प्रदेश के लोगों के प्रति आपका भाव प्रशंसनीय रहा है।

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पार्षद बनकर शुरू किया राजनीति का सफर

कवर्धा का फेमस डॉक्टर…जो 1983 में पार्षद बन गया। पार्षदी जीतकर राजनीति सफर शुरू किया। 1990 के विधानसभा चुनाव आए तो बीजेपी के आला अधिकारियों ने उन्हें युवा मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया। सुंदरलाल पटवा ने बस्तर से झाबुआ तक जो पदयात्रा निकाली थी, उसमें रमन सिंह सक्रिय रहे थे। रमन सिंह की सक्रियता देखकर उन्हें विधायक का टिकट दे दिया गया। टिकट मिलने के बाद वो कवर्धा से चुनाव लड़े और विधायक बन गए।

1993 में बाबरी मस्जिद गिरी तो बीजेपी सरकार बर्खास्त हुई। सरकार बर्खास्त होने के बाद दोबारा चुनाव हुआ तो सरकार नहीं बची, लेकिन रमन सिंह की विधायकी बची रही। विधायकी के साथ डॉ. सिंह ने विधानसभा की पत्रिका विधायनी का संपादन किया।

1998 में दोबारा चुनाव हुआ तो कवर्धा से वो चुनाव हार गए। चुनाव में हार का सामना होने के बाद डॉ. रमन सिंह ने अपने आप को पूरी तरह से मरीजों के लिए समर्पित कर दिया। वो राजनीतिक कार्यक्रमों में थोड़ा बहुत शामिल होते थे।

मोतीलाल वोरा को हराने के बाद आए चर्चा में

1999 में लोकसभा चुनाव के दौरान डॉ. रमन के मेंटर लखीराम अग्रवाल ने उन्हें राजनांदगांव से चुनाव लड़ने को कहा। पार्टी ने टिकट दिया तो सब ने तैयारी शुरू कर दी। डॉ. रमन सिंह के सामने कांग्रेस के दिग्गज प्रत्याशी मोतीलाल वोरा थे।

डॉ. रमन सिंह को लगा कि पार्टी उन्हें बलि का बकरा बना रही है लेकिन मेंटर अग्रवाल के कहने पर वो चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए। डॉ. रमन और उनकी टीम ने पूरी शिद्दत से चुनाव लड़ा और इसका असर यह निकला कि उन्होंने मोतीलाल वोरा को 26 हजार 715 वोटों से हरा दिया। मोतीलाल वोरा को हराने के बाद बीजेपी नेताओं के बीच डॉ. रमन सिंह के नाम की चर्चा होने लगी।

छत्तीसगढ़ वापस आए बीजेपी की संभाली कमान

1999 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने घोषणा कि 1 नवंबर 2000 को नए राज्य के रुप में छत्तीसगढ़ का औपचारिक गठन होगा। इस घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ के सीएम प्रत्याशी की तलाश बीजेपी ने शुरू कर दी थी। सीएम प्रत्याशी की रेस में बलिराम कश्यप, दिलीप सिंह जूदेव, रमेश बैस, बृजमोहन अग्रवाल जैसे दिग्गज नेता थे। उस समय बीजेपी नेताओं के निर्देश पर डॉ. रमन सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया और छत्तीसगढ़ बीजेपी के अध्यक्ष की कमान संभाली।

राजनाथ सिंह की पसंद से बने सीएम

2003 के विधानसभा चुनाव से पहले इंडियन एक्सप्रेस में अटल सरकार के मंत्री का स्टिंग प्रकाशित हुआ। ये स्टिंग छत्तीसगढ़ बीजेपी के दिग्गज नेता दिलीप सिंह जूदेव का बताया गया। दिलीप सिंह जूदेव अटल सरकार में वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री थे। 2003 में विधानसभा चुनाव से ठीक दो सप्ताह पहले उनका वीडियो वायरल हुआ था।

दिलीप सिंह जूदेव कुछ व्यक्तियों के साथ एक होटल में बैठे थे और उनके सामने पैसों का बंडल पड़ा हुआ था। वीडियो में दिलीप सिंह जूदेव नोटों के बंडल को माथे पर लगाते हुए दिखाए गए थे। दिलीप सिंह जूदेव की इस घटना का जिक्र छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी द्वारा लिखित पुस्तक सपनों का सौदागर में मिलता है। इस स्टिंग के बाद छत्तीसगढ़ बीजेपी में सीएम बनने की रेस में सबसे आगे चल रहे जूदेव पिछड़ गए।

भाजपा नेताओं की छवि भी धूमिल हो रही थी। भाजपा ने नए चेहरे की खोज शुरू की तो केंद्रीय मंत्री रमेश सिंह बैस का नाम सामने आया। बैस बीजेपी के आला नेता सुषमा स्वराज और लालकृष्ण आडवाणी की पसंद थे। रमेस बैस का नाम लगभग फाइनल था। लेकिन सीएम का नाम फाइनल करने से ठीक पहले राजनाथ सिंह छत्तीसगढ़ प्रवास पर आए।

राजनाथ सिंह की पसंद डॉ. रमन सिंह थे। डॉ. रमन सिंह के लिए राजनाथ सिंह ने रायपुर होटल में गुप्त बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में बीजेपी के जीते हुए प्रत्याशियों को बुलाया गया। होटल के कमरे में क्या चर्चा हुई, ये बाते आज तक स्पष्ट नहीं हुई है। लेकिन होटल में बैठक के बाद डॉ. रमन सिंह के नाम पर मुहर लग गई। डॉ. रमन सिंह के नाम पर मुहर लगने के बाद 22 दिसंबर, 2003 को पार्षदी से शुरुआत करने वाले रमन सिंह छत्तीसगढ़ के पहले निर्वाचित सीएम बन गए।