अफगानिस्तान के हेरात प्रांत की भीड़भाड़ वाली गुजरगाह मस्जिद में शुक्रवार को नमाज के दौरान धमाका हो गया। इस विस्फोट में प्रमुख मौलवी मुजीब उल-रहमान अंसारी व उसके सुरक्षा गार्डों समेत 20 लोगों की मौत हो गई। हमले की जिम्मेदारी अभी किसी ने नहीं ली है लेकिन मृतक संख्या बढ़ सकती है। हेरात के पुलिस प्रवक्ता मेहमूद रसोली ने बताया कि हमले में 23 लोगों के बुरी तरह घायल होने की आशंका है।
मस्जिद पर यह हमला ऐसे वक्त में किया गया है जब यहां मुस्लिमों का धार्मिक सप्ताह मनाया जा रहा था। मारा गया मौलवी दो दशकों से अफगानिस्तान में पश्चिम समर्थित सरकारों की निंदा करता रहा है और उसे तालिबान का करीबी माना जाता रहा है। तालिबान के प्रमुख प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने उसकी मौत की पुष्टि की है।
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इस हमले में कई लोग मारे गए हैं लेकिन अभी इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है। आमतौर पर देश में आईएस ने जिन हमलों को अंजाम दिया है, उनमें शिया मुसलमानों को निशाना बनाया गया है, लेकिन हेरात मस्जिद सुन्नी मुस्लिमों के लिए जानी जाती है। टोलो न्यूज के मुताबिक गुजरगाह मस्जिद में धमाके के बाद बड़े पैमाने पर तबाही हुई है।
अस्पताल में खून नहीं डॉक्टरों की संख्या कम
अफगानिस्तान में टोलो न्यूज के पत्रकार बिलाल सरवरी ने ट्विटर हैंडल से घटना के बारे में जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि धमाके में बुरी घायल हुए लोगों को खून की जरूरत है और अभी अस्पताल में खून नहीं है। स्थानीय अस्पताल में डॉक्टरों की संख्या भी बहुत कम है। सोशल मीडिया पर धमाके की तस्वीरों में भी भीषण तबाही दिखाई दे रही है। हेरात के गवर्नर के प्रवक्ता ने बताया कि यह आत्मघाती हमला भी हो सकता है।
मौजूदा प्रशासन का साथ दे रहा था अंसारी
हेरात पुलिस प्रवक्ता मेहमूद रसोली ने बताया कि मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना मुजीब उल-रहमान अंसारी और उसके कुछ गार्ड मस्जिद की तरफ जाते हुए मारे गए हैं। टोलो न्यूज के मुताबिक, अंसारी तालिबान का कट्टर समर्थक था और हाल ही में जून माह के अंत में तालिबान द्वारा आयोजित हजारों विद्वानों के एक सभा में उसने मौजूदा प्रशासन की दृढ़ता से तारीफ की थी।
अब भी कई जगह जारी हैं धमाके
पिछले साल 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करने के बाद भी देश में कई जगह धमाके जारी हैं। आमतौर पर ये धमाके शिया और अहमदिया समुदाय की मस्जिदों पर हुए हैं। बता दें कि अल्पसंख्यक समूहों के धार्मिक इबादतगाहों पर होने वाले हमलों में आईएस जिम्मेदारी स्वीकारता रहा है। दरअसल, तालिबान के अधिकांश विरोधी कमजोर पड़ चुके हैं लेकिन आईएस अब भी हमले जारी रखे हुए है। हालांकि तालिबान इस पर नियंत्रण के प्रयास में जुटा है।