महिला आरक्षण विधेयक की बीते कुछ दिनों से चर्चाएं तेज हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने संसद के विशेष सत्र के बीच सोमवार को इसे मंजूरी दे दी है। इसके तहत लोकसभा और विधानसभाओं जैसी निर्वाचित संस्थाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण का प्रावधान है। इस विधेयक को संसद के विशेष सत्र में पेश किया जा सकता है। इससे पहले सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री ने कहा था कि समय के हिसाब से बहुत बड़ा, मूल्यवान और ऐतिहासिक फैसलों का है। आइए इसके बारे में जानते हैं-
क्या है महिला आरक्षण विधेयक?
ये संविधान के 85 वें संशोधन का विधेयक है। इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान रखा गया है। इसी 33 फीसदी में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी है। लैंगिक समानता और समावेशी शासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होने के बावजूद यह विधेयक बहुत लंबे समय से अधर में लटका हुआ है।
शुरू से ही रहा विवादों में
पहली बार इस विधेयक को एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली लोकसभा में 1996 में पेश किया गया था। तब भी सत्तारूढ़ पक्ष में एक राय नहीं बन सकी थी। तब विधेयक की खिलाफत शरद यादव ने की थी। इसके बाद जब कुछ साल पहले बिल पेश किया जा रहा था, तब भी शरद यादव ने ही इसका विरोध किया था। 1998 में जब इस विधेयक को पेश करने के लिए तत्कालीन कानून मंत्री थंबी दुरै खड़े हुए थे, तब संसद में काफी हंगामा और हाथापाई हुई थी। विधेयक की प्रति भी लोकसभा में ही फाड़ दी गई थी।
विधेयक पारित करने का अच्छा समय
लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के लिए संविधान संशोधन अब समय की मांग है। महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन 108वां विधेयक राज्यसभा में पहले से पारित है। यह विधेयक 2010 में राज्यसभा में पारित हुआ, पर तब यह लोकसभा में पारित नहीं हो पाया था और 2014 में लोकसभा भंग होने के साथ ही यह रद्द हो गया था। चूंकि, राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है। अब लोकसभा इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा। 2024 के लोकसभा चुनाव नए कानून के तहत हो सकते हैं और नई लोकसभा में 33 फीसदी महिलाएं आ सकती हैं।
कविता ने 47 राजनीतिक दलों के प्रमुखों को लिखा था पत्र
बीते कई दिनों से महिला आरक्षण का मुद्दा उठाया जा रहा था। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की एमएलसी के. कविता ने हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित सभी 47 राजनीतिक दलों के प्रमुखों को एक पत्र लिखकर राजनीतिक मतभेद दूर करने को कहा था। उन्होंने कहा कि राजनीति से हठकर सभी लोग संसद के आगामी विशेष सत्र में महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने को प्राथमिकता दें।
कविता ने पत्र में भारतीय विमर्श में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और विधायी निकायों में उनके प्रतिनिधित्व की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया था। उन्होंने कहा था कि 14 लाख महिलाएं सार्वजनिक रूप से सक्रिय हैं। यह महिलाओं की नेतृत्व और शासन करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। एमएलसी कविता ने लोकतंत्र में समावेशिता के महत्व पर जोर देकर कहा कि महिलाओं का बढ़ा हुआ प्रतिनिधित्व विशिष्टता का मामला नहीं है, बल्कि अधिक न्यायसंगत और संतुलित राजनीतिक परिदृश्य बनाने का एक साधन है।
14 लाख महिलाएं सक्रिय
तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी कविता ने पत्र में भारतीय विमर्श में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और विधायी निकायों में उनके प्रतिनिधित्व की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि 14 लाख महिलाएं सार्वजनिक रूप से सक्रिय हैं। यह महिलाओं की नेतृत्व और शासन करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। एमएलसी कविता ने लोकतंत्र में समावेशिता के महत्व पर जोर देकर कहा कि महिलाओं का बढ़ा हुआ प्रतिनिधित्व विशिष्टता का मामला नहीं है, बल्कि अधिक न्यायसंगत और संतुलित राजनीतिक परिदृश्य बनाने का एक साधन है।
सर्वदलीय बैठक में भी उठा था मामला
संसद के विशेष सत्र से पहले सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी समेत विपक्ष और सत्ता पक्ष के कई नेताओं महिला आरक्षण बिल की वकालत की थी। अधीर रंजन ने कहा था कि सभी विपक्षी दलों ने विशेष संसद सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की मांग की है। सर्वदलीय बैठक के बाद भाजपा सहयोगी और राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा था कि हम सरकार से इस संसद सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की अपील करते हैं।
बीजद ने भी की थी पैरवी
सर्वदलीय बैठक में बीजू जनता दल (बीजद) और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) समेत कई क्षेत्रीय दलों ने महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश करने पर जोर दिया।