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गर्मी का आगाज भी नहीं हुआ और छत्तीसगढ़ के 400 गांवों में छा गया गंभीर पेयजल संकट, अभी से सूखे नलकूप

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छत्तीसगढ़: जल है तो कल यह तो आपने बहुत सुना होगा, लेकिन महासमुंद जिले में इन दिनों ”कल” की चिंता लोगों को बहुत सता रही है. अभी गर्मी का आगाज हुआ भी नहीं है और नलकूप और हैंडपंपों में लगातार गिरते जलस्तर के चलते पेयजल संकट गहराने लगा है. जिले में भूमिगत जल के दोहन की रफ्तार को देखते हुए आने वाले दिनों में पेयजल की गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है.

Narendra Modi

महासमुंद जिले में इन दिनों नलकूपों के हलक सूखने लगे हैं, हैंडपंप एक-एक कर जवाब दे रहे हैं. जिस तरह नलकूप खनन के बाद कुएं सूख गए, वैसे ही निजी नलकूपों के कारण हैंडपंपों की स्थिति बिगड़ चुकी है. अंचल में गर्मी के दिनों में पेयजल की समस्या विकराल रूप ले सकती है. हालांकि, घर-घर तक नल के माध्यम से शुद्ध पीने का पानी की आपूर्ति करने के लिए जल जीवन मिशन के तहत करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, जिसके लिए गांवों में पानी टंकियां बनाने और पाइपलाइन बिछाने का काम पिछले 1 साल से चल रहा है. अब तक किसी भी गांव में घर-घर पानी नहीं पहुंच पाया है.

ग्रामीणों के लिए पानी टंकियां शो-पीस बनकर रह गई हैं. इस बार मार्च के पहले सप्ताह से ही गर्मी का एहसास होने लगा है. अभी से ग्रामीणों को पेयजल के लिए जूझना पड़ रहा है. ग्रामीण बताते हैं कि पहले 10-15 फीट में कुआं खोदने से पानी मिल जाता था. नलकूप एवं हैंडपंपों की संख्या बढऩे के कारण कुएं अनुपयोगी हो गए. जब से निजी नलकूप खनन की होड़ लगी है, जलस्तर काफी नीचे चला गया. कई गांव में तो 400-500 फीट तक पानी नहीं मिल रहा है.

जिले के 400 से अधिक गांवों में जल संकट
पीएचई के जिला अधिकारी अनिल लोनार ने बताया कि महासमुंद जिले में 400 से अधिक गांव में वाटर लेवल नीचे चला गया है. इन गांवों में जल संकट की समस्या है, जल जीवन मिशन के तहत पंचायतों में निर्माण कार्य जारी है.

रेन वाटर हार्वेस्टिंग की जरूरत
पीएचई के जिला अधिकारी अनिल लोनार ने बताया कि भूमिगत जल को जिस मात्रा में बाहर निकाला जा रहा है, उस मात्रा में उसका भरण नहीं हो पा रहा है. इस समस्या के समाधान के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए जाने की आवश्यकता है. हालांकि, शासन द्वारा इसके लिए अभियान भी चलाया गया. सभी सरकारी भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य कर दिया गया है. इसके लिए शासन भारी-भरकम राशि भी खर्च कर चुकी है. बावजूद भी परिणाम संतोषजनक नहीं मिला है.