रायपुर। राजधानी में आजादी के अमृत महोत्सव पर स्वतंत्रता का महोत्सव नाम से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ये कार्यक्रम तिरंगा वंदन मंच ने किया। यहां बतौर अतिथि भगत सिंह के भतीजते किरणजीत सिंह पहुंचे। सहारनपुर के रहने वाले किरणजीत सिंह ने भगत सिंह से जुड़े फैक्ट युवाओं के साथ शेयर किए।
अगर आज भगत सिंह होते तो
किरणजीत सिंह ने कहा कि शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने जिस तरह के आजाद भारत का सपना देखा था, वो अभी भी अधूरा है। आदर्श समाज होगा, गरीबी-अमीरी में फर्क न हो, कमजोर वर्ग को सताया न जाए और सबको समानता मिले। 100 साल पहले जो गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं थीं, वो आज भी हैं। अगर आज भगत िसंह होते तो वो इन बुराइयों को दूरे करने देश में एक आंदोलन खड़ा करते।
किरणजीत ने कहा कि भगत सिंह के ऊपर बहुुत सारी फिल्में बनीं। कई फिल्मों में बढ़ा चढ़ाकर विवाह के प्रसंग को दिखाया गया। लेकिन असल में सिर्फ एक रिश्ता आया था जिसे उन्होंने मना कर दिया था। घर छोड़कर कानपुर चले गए थे। घर में उनकी दो विधवा चाची थीं। भगत सिंह को पता था कि उन्हें भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना है। शहीद होना पड़ेगा। देश के लिए शहीद भी हुए, लेकिन अभी तक संविधान में उन्हें शहीद का दर्जा नहीं मिला। ये बहुत दुख की बात है।
शव के टुकड़े आर्मी की ट्रक में रखा
फांसी के बाद 23 मार्च की शाम को उनके पार्थिव शरीर परिवार को नहीं दिए गए। संधू ने बताया कि शव के टुकड़े करके उसे आर्मी की ट्रक में रखा गया। इसके बाद जेल की पिछली दीवार तोड़कर लाहौर से फिरोजपुर ले जाया गया। ये खबर जब लोगों को पता चली, तो फिरोजपुर से हजारों लोग मशालें लेकर उस जगह जाने लगे, जहां अंग्रेज शहीदों के शव के टुकड़े बोरी में लेकर आए थे।
अंग्रेजों ने शवों के अवशेष जला दिए
सतलुज नदी के किनारे वो जगह आज हुसैनीवाला (पाकिस्तान) में आती है। वहां अंग्रेजों ने शवों के अवशेष जला दिए। जब अंग्रेजों ने लोगों की भीड़ को आते देखा, तो अधजली लाशों को नदी में प्रवाहित कर दिया और भाग गए। नदी के किनारे रेत पर जलती लाशों के कुछ अवशेषों के ठंडा होने का इंतजार लोगों ने किया। इसके बाद अगली सुबह रावी नदी के किनारे लाहौर में लाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया।


























