नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में सज़ायाफ़्ता नलिनी 32 साल बाद जेल से रिहा हुईं.
सुप्रीम कोर्ट ने बीते सप्ताह ही इस मामले में उम्र कैद की सज़ा काट रहे नलिनी और आरपी रविचंद्रन समेत सभी दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया.
जिस दिन ये आदेश आया उसके एक घंटे के अंदर ही बाकी दोषियों के साथ नलिनी भी जेल से बाहर आ गईं.
इन छह दोषियों में से चार – संथन, मुरुगन, जयकुमार और रॉबर्ट पायस श्रीलंका से थे जिन्हें एक स्पेशल कैंप ले जाया गया.
मीडिया से बातचीत में उस घटना पर सख़्त अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए नलिनी ने कहा कि अब वो अपने परिवार को एकजुट करने और अपने पारिवारिक रिश्ते को मज़बूत करने पर ध्यान देंगी.
नलिनी को आत्मघाती दस्ते का सदस्य होने का दोषी पाया गया था और तीन अन्य दोषियों के साथ उन्हें मौत की सज़ा दी गई.
लेकिन सोनिया गांधी की अपील के बाद उनकी सज़ा घटाकर उम्र क़ैद में तब्दील कर दी गई. इसके बाद वो अपनी रिहाई के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ रही थीं.
नलिनी बताती हैं कि जेल जाने से पहले उन्हें इन सब चीज़ों के बारे में कुछ भी पता नहीं था, “जब मुझे रिमांड पर लिया गया और अलग सेल में रखा गया था तो मैं बहुत डर गई थी.
मैं बहुत चिल्लाई. हंगामा खड़ा हो गया. मैं बाहर भाग गई. अधिराई और मेरी मां पास के ही सेल में बंद थे, वे भी बहुत डर गए थे. मेरी हालत देख कर वे भी चीखने लगे.
लेकिन उन्होंने मुझे अंदर जाने के लिए मनाया. मैंने राइफ़ल थामे सीआरपीएफ़ के जवानों से कहा कि अच्छा होता वे हमें गोली मार देते.”
जेल का अनुभव
वो कहती हैं, “मैं इतना चिल्लाई की गले से ख़ून निकलने लगा. यह बहुत मुश्किल भरा समय था. जब मुझे गिरफ़्तार किया गया, पांच दिन से मुझे बुखार था, यहां तक कि मैं बिस्तर से उठ भी नहीं पा रही थी.
दो दिन तक तो उन्होंने मुझे सोने नहीं दिया. मुझमें इन हालात का सामना करने की हिम्मत नहीं थी. मैं बिना ब्रश किए या बाल संवारे पड़ी रहती थी.
हालात सुधरने के दौरान मेरे सीने में दर्द शुरू हो गया. कई लोगों ने सोचा कि मैं नाटक कर रही हूं, लेकिन जब डॉक्टर ने जांच की तो उसने इस शिकायत को सही पाया.” “इसके कुछ समय बाद हालात थोड़े सुधरे. उसी समय कोडियाक्कराई शणमुगम की मौत हो गई. जेल प्रशासन ने हमें हथकड़ियां लगाना शुरू कर दिया. मैं मज़ाक में उनसे कहा करती थी कि क्या चूड़ी पहनाने का कार्यक्रम हो गया है.”
टाडा अदालत ने जब 28 लोगों को मौत की सज़ा सुनाई जिसमें उनका नाम सबसे पहले था, तो वे हैरान रह गईं. वो कहती हैं, “अपराध करने को लेकर मैंने कभी भी हलफ़िया बयान नहीं दिया, लेकिन मैं इसे अदालत में कभी सिद्ध नहीं कर पाई.
फ़ैसले के बाद मुझे एक दूसरे सेल में स्थानांतरित कर दिया गया. वे हमें इस तरह बंद रखते थे जैसे मौत की सज़ा पाए क़ैदियों को रखा जाता है. इसके कुछ ही समय बाद मैंने बेटी को जन्म दिया. हालात कुछ और बेहतर हुए.” नलिनी को जब गिरफ़्तार किया गया था तो वो क़रीब दो महीने की गर्भवती थीं. उनकी गिरफ़्तारी के तुरंत बाद उनके पति, मां और छोटे भाई को भी गिरफ़्तार कर लिया गया.
नलिनी कहती हैं कि उनका परिवार आर्थिक रूप से मज़बूत नहीं था और इन हालात में स्थिति और चरमरा गई. राजीव गांधी की हत्या के दौरान 16 अन्य लोगों की भी जान गई थी. उनके परिजन दोषियों की रिहाई का कड़ा विरोध कर रहे हैं.
अफ़सोस
नलिनी का कहना है, “मुझे उनके परिजनों को लेकर अफ़सोस होता है. मैं नहीं जानती कि उन्हें अपने परिजनों के खोने पर कोई आर्थिक मदद मिली या नहीं. ये वाक़ई उनके लिए भारी हानि है.
मुझे लगता है कि घर के मुखिया को खोना वाक़ई बड़ी क्षति है. मैं सोचती हूं कि उन्हें हमारी स्थिति के बारे में समझना चाहिए.” वो कहती हैं, “मुझे बहुत बुरा लगता है. 17 लोगों को मारने के पीछे मेरी क्या मंशा हो सकती है? इसकी क्या ज़रूरत है? क्या मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूं? क्या मुझे उनकी हत्या करके अपनी आजीविका चलानी चाहिए?”
वो इसका जवाब ख़ुद ही देती हैं, “ऐसी कोई बात नहीं है. यहां तक कि मैं उनके नाम तक नहीं जानती. लेकिन उन्हें मारने के अपराध का दोष मुझे दिया जाता रहा है.
ये कुछ और नहीं हमारी बदक़िस्मती है. हमने उन्हें कभी देखा तक नहीं. उन्हें नुक़सान पहुंचाने के बारे में कोई विचार तक नहीं था. मुझे लगता है उन्हें इस बात को समझना चाहिए.”
जो लोग इस हत्या में शामिल थे, उनसे परिचय के बारे में नलिनी का कहना है, “वे उस तरह नहीं लगते थे. आप कह सकते हैं कि मैं शायद उस समय उतनी समझदार नहीं थी. मैं बहुत व्यस्त रहती थी. मैं पढ़ रही थी, काम कर रही थी, पढ़ाई के लिए क्लास जाती थी.
क्लास के बाद आने पर मैं रात 11 बजे ही सोने जा पाती थी. इस दिनचर्या में मैंने उस तरह कभी नहीं सोचा.” नलिनी बताती हैं कि जब उनकी मौत की सज़ा रद्द कर दी गई तो ऐसा ही बाकी लोगों के बारे में उम्मीद बढ़ गई. हालांकि उससे पहले उनकी फांसी को लेकर सात बार घोषणाएं हो चुकी थीं.
इसमें चार बार तो तारीख़ भी मुकर्रर कर दी गई थी. यहां तक कि अंतिम इच्छा जानने के लिए एक धर्मगुरु भी आकर मिल गए. सारी तैयारी कर ली गई.
फांसी की रस्सी भी तैयार कर ली गई, फांसी पाने वाले क़ैदी का सेल भी तैयार कर लिया गया. उनका वज़न भी लिया गया और उसी वज़न की रेत की बोरी को लटका कर रिहर्सल भी किया गया.
नलिनी कहती हैं, “ये सब मेरी आंखों के सामने हुआ. लेकिन मैंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी. मैंने सोचा, मैंने कुछ भी ग़लत नहीं किया था, इसलिए मेरे साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा.”
अब जब रिहाई के बाद एक नई ज़िंदगी शुरू करने का मौका फिर से मिला है, नलिनी उम्मीद जताती हैं, “मैं अपने पति और बेटी के साथ रहना चाहती हूं. मैं परिवार को एकजुट करना चाहती हूं, यही मेरी ख़्वाहिश है.”
21 मई, 1991 को राजीव गांधी की तमिलनाडु में चेन्नई के पास स्थित श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान धनु नाम की लिट्टे की एक आत्मघाती हमलावर ने हत्या कर दी थी.
इस आत्मघाती हमले में राजीव गांधी और हमलावर धनु समेत 16 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि 45 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने 26 दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई थी. हालांकि मई 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने 19 लोगों को बरी कर दिया था. बचे हुए सात में से चार अभियुक्तों (नलिनी, मुरुगन उर्फ श्रीहरन, संथन और पेरारिवलन) को मृत्युदंड सुनाया गया और बाकी (रविचंद्रन, रॉबर्ट पायस और जयकुमार) को उम्र क़ैद की सज़ा मिली.
चारों की दया याचिका पर तमिलनाडु के राज्यपाल ने नलिनी की मौत की सज़ा तो उम्र क़ैद में तब्दील कर दी. बाकी अभियुक्तों की दया याचिका 2011 में राष्ट्रपति ने ठुकरा दी थी.
सभी अभियुक्त ख़ुद को समय से पहले रिहा करने की मांग को लेकर लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ते रहे थे.
तमिलनाडु सरकार ने भी इन्हें समय से पूर्व रिहा करने के लिए गवर्नर से सिफ़ारिश की थी. हालांकि गवर्नर ने सिफ़ारिश को मानने से इनकार करते हुए राष्ट्रपति को फ़ाइल भेज दी थी.
इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट में जून में नलिनी और रविचंद्रन ने रिट याचिका दायर कर तमिलनाडु सरकार से रिहाई का निर्देश देने की मांग थी.
इसमें कहा गया था कि उनकी रिहाई के लिए सितंबर 2018 में कैबिनेट ने जो सिफ़ारिश की थी, उस पर गवर्नर की मंज़ूरी के बगैर अमल हो जाए.
नलिनी की रिहाई का आधार 18 मई को पेरारिवलन की रिहाई बना. कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 में दिए गए असाधारण शक्तियों का हवाला देकर पेरारिवलन को रिहा कर दिया था.
पेरारिवलन राजीव गांधी हत्याकांड में 30 साल उम्र क़ैद की सज़ा काट चुके थे.