रायपुर । लोगों को त्वरित न्याय दिलाने में अब उपलब्ध भौतिक साक्ष्यों की भूमिका बढ़ गई है। साक्ष्यों की फिंगर प्रिंट और दस्तावेज परीक्षण के द्वारा पहचान की जाती है। पुलिस मुख्यालय में एक क्यूडी शाखा है जो साक्ष्यों की तकनीकी परीक्षण कर पहचान बताती है। न्यायालय में ये सबूत काफी मायने रखते हैं। थानों के विवादित मामलों की जांच एवं कई हाई प्रोफाइल मामलों की जांच में फिंगरप्रिंट और दस्तावेज परीक्षण की अहम कड़ी है। राज्य बनने के 24 सालों में पीएचक्यू में करीब 10 डीजीपी बैठ गए लेकिन किसी ने इस महत्वपूर्ण तकनीकी शाखा की सूध नहीं ली।
इन 24 सालों में वहां किसी स्तर भी पर तकनीकी स्टॉफ की कोई भर्ती नहीं की गई। मध्यप्रदेश से बंटवारे के समय आए तकनीकी स्टॉफ धीरे- धीरे रिटायर होते गए। अब वहां पर्याप्त स्टॉफ नहीं है। बताया जा रहा है कि वहां तालेबंदी की नौबत आ गई है। साक्ष्यों के फिंगर प्रिंट व दस्तावेज परीक्षण के लिए राज्य के विभिन्न थानों से आने वाले जवानों को स्टाफ की कमी का हवाला देकर उन्हें लौटा देने की खबर मिल रही है। भारत सरकार की नई तीन पुलिस संहिताओ में फोरेंसिक को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। पीएचक्यू के जिम्मेदार अभी तक सोते रहे परंतु अब उन्हें अपना सिर धुनना पड़ रहा है। आखिर विशेषज्ञों की कमी को कैसे दूर किया जाए।
दस्तावेज परीक्षण जैसी महत्वपूर्ण शाखा जिसमें तमाम संवेदनशील दस्तावेज की जांच होती है और फिर कोर्ट में पेश की जाती है। वहां आज मात्र 2 अधिकारी है। क्यूडी शाखा प्रभारी, पुलिस अधीक्षक सेवानिवृत हो चुके हैं। जबकि भोपाल की क्यूडी शाखा में 100 से अधिक स्टाफ है। छत्तीसगढ़ की क्यूडी शाखा में कोई एएसआई, एसआई, इंस्पेक्टर, हवलदार तक नहीं है। केस लगातार बढ़ रहे है। सूत्र बताते हैं कि पर्यवेक्षण अधिकारी के नहीं होने के कारण लगभग 300 से ज्यादा केस पेंडिंग है। इसका सीधा असर न्यायालयीन प्रक्रिया पर हो रहा है, जिस कारण सामान्य नागरिक को न्याय प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ रही है।