एक साल में 1 प्रतिशत कम हुई रेपो दर
मध्यम वर्ग को बहुत अधिक फायदा
हस्ताक्षर न्यूज. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) मौद्रिक नीति समीक्षा के तहत रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत की कमी की गयी है. रेपो दर कम होने की वज़ह से अब होम और ऑटो लोन के साथ ही अन्य कर्ज कम होने की उम्मीद है साथ ही जिन लोगों ने पूर्व में लोन लिया है उनकी emi भी घटने की संभावना है.
RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा शुक्रवार सुबह 10 बजे मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) की बैठक ले रहे है.
पिछले एक साल में 0.50 प्रतिशत कम हुई रेपो दर
इस साल फरवरी में RBI ने रेपो रेट को 6.5% से घटाकर 6.25% किया था. फिर अप्रैल की बैठक में 0.25% की और कटौती की गई. यानी वित्त वर्ष 2025-26 की शुरुआत में ही रेपो रेट में कुल 0.50% की कमी की जा चुकी है.
रेपो दर कम होने का असर
- बैंक लोन की ब्याज दरें घट सकती हैं
- हाउसिंग सेक्टर में निवेश बढ़ेगा, जिससे रियल एस्टेट सेक्टर को बूस्ट मिलेगा
- EMI कम होने से ग्राहकों की जेब पर बोझ हल्का होगा
- ऑटो, पर्सनल और एजुकेशन लोन भी सस्ते हो सकते है
Repo Rate (रेपो रेट) वह दर होती है जिस पर RBI देश के बैंकों को अल्पकालिक कर्ज देता है. जब यह दर घटती है, तो बैंकों को सस्ता फंड मिलता है और वे आम लोगों को कम ब्याज पर लोन देते हैं.
RBI रेपो रेट में बदलाव क्यों करता है?
स्थिति | RBI क्या करता है? | मकसद |
---|---|---|
महंगाई बढ़ने पर | रेपो रेट बढ़ाता है | मनी फ्लो घटाना |
आर्थिक सुस्ती होने पर | रेपो रेट घटाता है | मांग को बढ़ावा देना |
रेपो रेट बढ़ाने से कर्ज महंगा होता है, जिससे बाजार में पैसे की मात्रा घटती है और महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है. वहीं, जब अर्थव्यवस्था में सुस्ती होती है, तो रेपो रेट घटाने से लोन सस्ते होते हैं और मांग को बढ़ावा मिलता है.
कितनी बार होती है मीटिंग
RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) में कुल 6 सदस्य होते हैं — 3 RBI से और 3 भारत सरकार द्वारा नियुक्त. यह समिति हर दो महीने में बैठक करती है.
वित्त वर्ष 2025-26 में RBI की कुल 6 बैठकें निर्धारित हैं. पहली बैठक 7 से 9 अप्रैल को हो चुकी है. अगली बैठक का निर्णय आज, 6 जून को घोषित किया जाएगा.