विनोद कुमार शुक्ल की हरी स्कूटर.. निश्चय कुमार के मंथली कॉलम की पहली किश्त

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बचपन की याद में बसी शुक्ल जी की हरी स्कूटर
विनोद कुमार शुक्ल को हिंदुस्तान के साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार ज्ञानपीठ हाल ही में दिया गया। विनोद कुमार शुक्ल मेरे पापा स्व. विभु कुमार के करीबी दोस्तों में से रहे। शुक्ल जी को ज्ञानपीठ अवार्ड मिलने की खबर से अचानक इतिहास के रूपहले पन्ने सामने आ गए।
मुझे अच्छी तरह से याद है विनोद कुमार शुक्ल हमारे घर पर हरे रंग की चेतक स्कूटर से आया करते थे। जब हम लोग ब्राह्मणपारा के घर में रहते थे। पापा से उनकी बहुत अच्छी दोस्ती रही। हमारे परिवार और शुक्ल जी के परिवार के बीच काफी आत्मीय संबंध रहे। शुक्लजी अधिकतर शाम के वक्त पापा से मिलने घर आया करते थे। ये सिलसिला ब्राह्मणपारा के मकान के बाद जब हम लोग देवेन्द्र नगर रहने आ गए तब भी चलता रहा। अमूमन हर दूसरे दिन शुक्लजी पापा से मिलने आते। पापा और उनके बीच साहित्यिक विचार-विमर्श होता रहता। उस वक्त मैं बहुत छोटा था। मुझे बहुत कुछ तो याद नहीं लेकिन फिर भी इतना जरूर याद है कि शुक्ल जी कृषि महाविद्यालय में प्रोफेसर थे। शाम को जब वे आते तो पापा के साथ चाय की चुस्कियों के बीच घंटों बातें होती। मेरी स्मृति में ये बात भी है कि हम लोग भी उनके घर जाया करते थे। कई बार उनके घर पर डिनर के लिए भी आमंत्रित रहे। मुझे ये भी याद है कि शुक्ल जी एक बार राजेन्द्र मिश्र और अशोक बाजपेयी के साथ हमारे घर पर आए। अशोक बाजपेयी जी और शुक्ल जी करीबी रिश्तेदार हैं। कई बार इनके साथ हरिशंकर शुक्ल जी भी हमारे घर आए। हरिशंकर शुक्ल जी दुर्गा कॉलेज में प्रोफेसर थे। पापा के सीनियर थे। काफी घनिष्ठ संबंध हमारे उनके परिवार के बीच रहे।

पापा के झगड़े भी रहे मशहूर
पापा और शुक्ल जी के बीच नब्बे के मध्य दशक में कुछ वैचारिक मतभेद हो गए थे। उसके बाद उन्होंने हमारे घर आना छोड़ दिया था। हालांकि मम्मी कभी-कभी शुक्ल जी के घर जरूर जाया करती थी लेकिन उसके बाद पापा से मिलने शुक्ल जी कभी नहीं आए। शायद पापा ने भी कभी शुक्ल जी से मिलने की कोई खास कवायद अपनी तरफ से नहीं की। साहित्यिक परिचर्चाओं और गोष्ठियों में यदा-कदा दोनों की मेल-मुलाकात कभी-कभी हो जाती थी। वो भी हाय-हैलो और बाय तक ही सीमित रह गई। मुझे अच्छे से याद है कि पापा की दोस्ती तो मशहूर रहती ही थी उनके झगड़े भी बड़े मशहूर होते थे। शुक्ल जी के साथ उनकी ये नोंक-झोंक का किस्सा मुझे कुछ हल्का सा आज भी याद है।
– निश्चय विभु कुमार