छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के 24 साल पूरे हो चुके हैं। राज्य स्थापना को लेकर रायपुर के साइंस कॉलेज ग्राउंड में राज्योत्सव का आयोजन किया जा रहा है। राज्य के इतिहास की किताबों के पन्नों को पलटने पर पता चलता है कि आखिर क्यों इस इलाके का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। प्रदेश के इतिहासविद् बता रहे हैं इस नाम के पीछे की दिलचस्प कहानी। भोपाल के रहने वाले प्रोफेसर हीरालाल शुक्ल की किताब के मुताबिक रामायण काल से सत्रहवीं शताब्दी तक इस इलाके को कोसल या दक्षिण कोसल के तौर पर जाना जाता था।
1664 में गंगाधर मिश्र ने कोसलानंदम् महाकाव्य लिखा था। इसमें एक श्लोक में लिखा गया था – पुराणपठिता भूमिरियं दक्षिण कोशला, युगांतरेषू भूपानामेष दुर्गसनातन:। इन पंक्तियों में दुर्ग यानि किलों का जिक्र है। इन्हें कुछ सालों बाद गढ़ कहा गया। छत्तीसगढ़ में गोंड राजाओं के वक्त उनके 36 किले थे। इसी वजह से इस इलाके को छत्तीसगढ़ कहा गया।
रतनपुर के कवि गोपाल मिश्र ने खूब तमाशा नाम की किताब 1686 में लिखी थी। इसमें छत्तीसगढ़ नाम का पहली बार प्रयोग हुआ। उन्होंने लिखा था छत्तीसगढ़ गाढ़े जहां बड़े गड़ोई जान, सेवा स्वामिन को रहे सकें ऐंड़ को मान।
छत्तीसगढ़ नाम से जुड़े कुछ और तथ्य
1686 की रचना के करीब 150 साल बाद रतनपुर के बाबू रेवाराम ने अपने विक्रम विलास नाम के ग्रंथ में छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग किया, उन्होंने लिखा- तिनमें दक्षिन कोसज देसा, जहं हरि ओतु केसरी बेसा, तासु मध्य छत्तीसगढ़ पावन। पहली बार सरकारी दस्तावेजों में छत्तीसगढ़ शब्द का जिक्र 1820 में मिलता है।
इतिहासविद डॉ हेमू यदू ने बताया कि तब के अंग्रेज अधिकारी एग्न्यू की रिपोर्ट में उसने इस क्षेत्र को छत्तीसगढ़ प्रोविंस लिखा। इसे बाद में छत्तीसगढ़ प्रांत कहा गया। यह रिपोर्ट पारिवारिक जनगणना की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक तब के छत्तीसगढ़ में 1 लाख 6 सौ 53 परिवार रहा करते थे। आज छत्तीसगढ़ की आबादी पौने तीन करोड़ है।
चेदिदेश भी था नाम
वरिष्ठ पत्रकार बसंत तिवारी की किताब में इतिहासकार कनिंघम की बातों का जिक्र मिलता है। इसके मुताबिक कलचुरी वंश के चेदीराजा यहां के मूल निवासी थे। इस क्षेत्र का नाम चेदिदेश हुआ करता था। छत्तीसगढ़ राज्य के आंदोलन से जुड़ी छत्तीसगढ़ समाज पार्टी कि किताब में भी राज्य के नाम का जिक्र है।
इस किताब के मुताबिक 15वीं शताब्दी में छत्तीसगढ़ नाम बोला-सुना जाने लगा था। छत्तीसगढ़ नाम को लेकर कहा गया है कि प्रदेश के 18-18 गढ़ शिवनाथ नदी के उत्तर और दक्षिण में स्थित थे, जिन पर कल्चुरी राजाओं का कब्जा था, इन्हीं की वजह से यह नाम मिला। सन 2000 में जब राज्य का गठन किया गया तब देश को छत्तीसगढ़ 26वें राज्य के रुप में मिला।
कहां हैं छत्तीसगढ़ के 36 किले
अधिकांश इतिहास कारों का मत है कल्चुरी राजाओं ने 36 किले बनाए। कुछ का कहना है कि कई गांवों को मिलाकर 36 गढ़ बनाए गए थे। तब इस इलाके की राजधानी बिलासपुर जिले में स्थित रतनपुर हुआ करती थी।
शिवनाथ नदी के उत्तर में कल्चुरियों की रतनपुर शाखा के अंतर्गत 18 गढ़ और दक्षिण में रायपुर शाखा के अंतर्गत 18 गढ़ बनाए थे। वर्तमान समय में चैतुरगढ़, रतनपुर में किलों के साक्ष्य मौजूद हैं। इतिहास कार रमेंद्र नाथ रायपुर शहर के बूढ़ापारा इलाके में किला होने का दावा करते हैं। हालांकि, 36 में से अधिकांश गढ़ों के अवशेष वर्तमान में नहीं मिलते।
36 गढ़ों के नाम
- रतनपुर राज्य के अधीनस्थ 18 गढ़ :- रतनपुर, विजयपुर, पंडर भट्टा, पेंड्रा, केन्दा, बिलासपुर, खरौद, मदनपुर (चांपा), कोटगढ़, कोसगई (छुरी), लाफागढ़ (चैतुरगढ़), उपरोड़ागढ़, मातिनगढ़, करकट्टी-कंड्री, मारो, नवागढ़, बाफा, सेमरिया।
- रायपुर के अधीनस्थ 18 गढ़ :- रायपुर, सिमगा, ओमेरा, राजिम, फिंगेश्वर, लवन, पाटन, दुर्ग, सारधा, सिरसा, अकलबाड़ा, मोहंदी, खल्लारी, सिरपुर, सुअरमार, सिंगारपुर, टैंगनागढ़, सिंघनगढ़।