75 साल पहले शहर एक साहित्यकार की निगाह से… पढ़िए युवा साहित्यकार अपूर्व गर्ग का लिखा रोचक आलेख

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रायपुर की माटी ने एक से एक जवाहरात उगले हैं .यहाँ की हवा में अदब की हर विधा के गीत संगीत घुले हुए हैं .विनोद कुमार शुक्ल
के साहित्य की बयार ही नहीं बहती ,डॉ नरेंद्र देव के गीत ही नहीं गूंजते ,इस शहर की फ़िज़ा आबो हवा में हरि ठाकुर , प्रभाकर चौबे
राजेंद्र मिश्र जैसे ढेर लेखकों के शब्दों की भीनी सुगंध शामिल है .

इस शहर की नर्सरी में गद्य और पद्य के सुंदर फूलों को उगाकर प्रदेश -देश को महकाया डॉ विभु खरे , प्रोफेसर विनोद शंकर शुक्ल, राजेंद्र मिश्र जैसे ढेर महत्वपूर्ण शिक्षाविद और साहित्यकारों ने .

बातों बातों में डंडे -झंडे लहराकर यात्रायें निकालता ये शहर आज अपने महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों को भूल रहा पर मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् ,वागीश्वरी पुरुस्कारों से सम्मानित विभु खरे के शब्द ,बातें और यादें इतनी गहरी हैं जो कभी नहीं मिटेंगी .

विभु खरे जानते थे ये शहर ही नहीं ये समाज और देश किस आत्मघाती रास्ते पर बढ़ रहा है . विभु खरे हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी चिंता ,उनके विचार उनके हर शब्द आज भी हमें झकझोरते हैं . ‘ शहरनामा ‘ में उन्होंने इस रायपुर शहर से दो टूक कहा है –

” शहर , तुम्हर कोफ़्त होती है या नहीं . क्रोधित होते हो या नहीं . मनुष्य की स्वायत्तता छीनी जा चुकी है . अधिकांश को [ राग] दरबारी बना दिया गया ……..मियां रायपुर तुमने अपनी हालत देखी है .

मुझे तो रोना आ रहा है तुम्हारी इस हालत पर .

मुझे पचास-पचपन साल पहले का समय याद आ रहा है , तब तुम कितने शांत ,कितने पवित्र और कितने सुंदर थे …….. दुःख -दर्द और सुख में निस्पृह भाव से शामिल होने वाले पड़ोसी . सामजिक सरोकारों से गहरा लगाव छोटे से छोटे घर के आँगन में तुलसी चौरा ….कभी बिजली का अभाव महसूस नहीं हुआ .

शाम होते ही एक व्यक्ति हाथ में लैंप लेकर सड़क पर लगे लैम्पों को जलाने आता …ठेले पर रिकॉर्ड बजता मधुर गीत -संगीत , मसलन -गाये जा गीत मिलन के , तू अपनी लगन के …….

डिअर , याद तो बहुत आ रहा है …मन एकदम दुखी हो गया है …”

इससे पहले प्रोफेसर खरे रायपुर के अपने प्रिय लोगों को चेता कर कहते हैं ” तुम्हारा टीवीमय हो जाना तुम्हारी उपलब्धियाँ भी
‘पिकासो’ की विश्व युद्ध की भयंकरता को दर्शाने ‘गुएर्निका ‘ से भी ज़्यादा भयंकर है . विश्व युद्ध से ज़्यादा खतरनाक है …….हर पल का सूत्रधार टीवी , ज़िंदगी रुपी कठपुतली का सूत्रधार टीवी . कम्बख़्त , यह शहर न जीने लायक रह गया है , न मरने लायक …”

‘ शहरनामा ‘ से प्रोफेसर विभु खरे ने मियां रायपुर से तब गुफ़्तगू की थी जब सोशल मीडिया व्हाट्सअप आदि का जन्म भी नहीं हुआ था .आज होते तो खरे जी कितनी खरी बातें कहते ,ज़रा सोचिये !

ये शहर खरे जी की खरी -खरी बातों को कैसे भूल सकता है !

एक बार दुर्गा कॉलेज के प्राचार्य जो बाद में कुलपति और मंत्री भी बने प्रो . रणवीर सिंह शास्त्री ने प्रो .खरे से कहा ” आप कक्षा में पढ़ाते शेरो -शायरी करते हैं ?”

प्रो .खरे ने जवाब दिया ” शेरो -शायरी नहीं करता सर , जब कविता पढ़ाते हुए मिलते जुलते भावों का शेर याद आता है तो अवश्य सुनाता हूँ . सर , आप संस्कृत के विद्वान हैं , क्या आप स्वयं कविता पढ़ाते समय संस्कृत के श्लोक नहीं सुनाते ? कविता में निहित भावों को विस्तार देने ,उसकी अर्थ छवियों को , उसके निहितार्थ को ज़्यादा स्पष्ट एवं प्रभावोत्पादक बनाने के लिए ….”

साहित्यकार और प्रोफेसर विभु खरे मेरे पापा प्रोफेसर यतेंद्र कुमार गर्ग के Colleague ही नहीं अच्छे साहित्यिक मित्र थे .
खरे साहब को गुज़रे करीब 17 बरस हो चुके पर उस दौरान भी उन्होंने इस प्यारे रायपुर शहर को आगाह कर कहा था –

” पार्टनर !’ समुझ झरोखे बैठ के , जग का मुजरा देख ‘ वाला वक़्त नहीं रहा . हरेक को लड़ना होगा .दूसरों के लिए . दूसरा बचेगा तो हम बचेंगे . सर उठाकर देखो ज़रा . चारो ओर भयंकर अँधेरा है जो निरंतर गहराता जा रहा है . लोग -बाग़ मस्ती में मस्तियों कर रहे हैं और तुम चुप हो .तुम्हारी ये चुप्पी सर्वनाश का संकेत है।

इस आर्टिकल के लेखक अपूर्व गर्ग, छत्तीसगढ़ प्रदेश के युवा साहित्यकार हैं।