हर साल 16 दिसंबर को भारत की पाकिस्तान पर जीत को विजय दिवस (Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है. 1971 की जंग में भारतीय सेना के पराक्रम के सामने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने घूटने टेक दिए थे और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का उदय हुआ था. 13 दिन चले इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिक्सत का स्वाद चखना पड़ा. आइए जानते हैं भारत की पाकिस्तान पर विजय से जुड़ी 7 बड़ी बातें.
अंग्रेजों बंटवारा और पूर्वी पाकिस्तान का दमन
अंग्रेजों का जातीय आधार पर किए गए बंटवारे के आधार पर भारत के दो हिस्सों को पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान के नाम पर अलग कर दिया गया था. बंगाल के बड़े हिस्से को पूर्वी पाकिस्तान नाम दिया गया था, जिसने करीब 24 साल तक पश्चिमी पाकिस्तान के शोषण और अत्याचारों को सहा.
पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ साथ आया भारत
पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों से परेशान होकर 26 मार्च, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर उत्तराधिकार की मांग उठाई. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके स्वतंत्रता संग्राम में उनका साथ दिया था. उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से निकले लोगों को शरण देने का फैसला किया. लाखों लोग अपना देश छोड़कर भारत आ गए थे.
भारत में एयर स्ट्राइक की भूल कर बैठा पाकिस्तान
3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने 11 भारतीय वायु सेना स्टेशनों पर हवाई हमले शुरू कर दिए थे. जिसके बाद भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में सीधे तौर पर शामिल हो गई. इससे बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम भारत-पाकिस्तान युद्ध में बदल गया. इंदिरा गांधी ने आधी रात को ऑल इंडिया रेडियो से इस युद्ध की घोषणा की थी.
‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ के बाद कई दिनों तक धधकता रहा कराची पोर्ट
4 दिसंबर, 1971 को भारत द्वारा ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ लॉन्च किया गया. भारतीय जल सीमा घूम रही पाकिस्तानी पनडुब्बी को नष्ट करने का जिम्मा एंटी सबमरीन फ्रिगेट आईएनएस खुखरी और कृपाण को सौंपा गया. इस टास्क की जिम्मेदारी 25वीं स्क्वॉर्डन कमांडर बबरू भान यादव को दी गई थी. ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ के तहत 4 दिसंबर, 1971 को भारतीय नौसेना ने कराची नौसैनिक अड्डे पर भी हमला बोल दिया था. एम्यूनिशन सप्लाई शिप समेत कई जहाज नेस्तनाबूद कर दिए गए थे. इस दौरान पाकिस्तान के ऑयल टैंकर भी तबाह हो गए थे. कई दिनों तक कराची पोर्ट पर तेल के भंडार से आग की लपटे उठती रहीं, जिन्हें लगभग 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था.
मुक्ति वाहिनी के लड़के और भारतीय फौज के सामने ध्वस्त हुआ ना’पाक’ मंसूबा
पूर्वी पाकिस्तान में, मुक्ति वाहिनी के लड़कों ने पूर्व में पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ लड़ने के लिए भारतीय सेना के साथ हाथ मिला लिया. युद्ध के दौरान दक्षिणी कमान ने पाकिस्तान की किसी भी कार्रवाई के खिलाफ देश की सीमाओं की रक्षा की. दक्षिणी सेना के उत्तरदायित्व वाले क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाइयों में लोंगेवाला और परबत अली की प्रसिद्ध लड़ाइयां शामिल हैं. इधर, पाकिस्तान के बख्तरबंद बलों को मटियामेट करने का काम दृढ़ भारतीय सैनिकों ने कर दिया.
लेफ्टिनेंट कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर) भवानी सिंह के नेतृत्व में प्रसिद्ध 10 पैरा कमांडो बटालियन के सैनिकों ने पाकिस्तानी शहर चाचरो पर धावा बोला. इन लड़ाइयों ने इतिहास में एक मिसाल कायम की हैं और हमारे सैनिकों के धैर्य, दृढ़ संकल्प और बहादुरी को दर्शाती हैं.
14 दिसंबर को दहल उठा पाकिस्तान
14 दिसंबर को, इंडियन एयर फोर्स ने एक घर पर हमला किया, जहां पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर के साथ बैठक हो रही थी. इस हमले से पाकिस्तान दहल उठा. नतीजतन, आत्मसमर्पण प्रक्रिया 16 दिसंबर 1971 को शुरू हुई और उस समय लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था. इस तरह 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश का जन्म एक नए राष्ट्र के रूप में हुआ और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) पाकिस्तान से आजाद हो गया.
1971 की जंग में शहीद हुए थे करीब 3900 भारतीय जवान
इस युद्ध को भारत के लिए एक ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है. इसीलिए पूरे देश में पाकिस्तान पर भारत की विजय पर 16 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. कहा जाता है कि 1971 के युद्ध में लगभग 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे और लगभग 9,851 घायल हुए थे.